चिकनपॉक्स के लिए करे ये उपचार
इस समस्या में मरीज को तली-भुनी, खट्टी नमक वाली चीजें खाने के लिए नहीं देनी चाहिए
* चिकनपॉक्स वेरीसेला जोस्टर नामक वायरस से होने वाली समस्या है। यह एक प्रकार का संक्रामक रोग है जो खांसने, छींकने, छूने या रोगी के सीधे संपर्क में आने से फैलता है।
* अधिकतर पीडित बच्चे नवजात से लेकर 10-12 साल की उम्र के बच्चों को चिकनपॉक्स की समस्या ज्यादा होती है लेकिन कई मामलों में ये इससे अधिक उम्र के लोगों को भी हो सकती है।
* एक बार यह रोग होने और इसका पूरा इलाज लेने के बाद इसके दोबारा होने की आशंका कम हो जाती है लेकिन 50 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों को कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण यह बीमारी फिर से हो सकती है। इसके अलावा गर्भवती महिलाएं, कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग, लंबे समय से किसी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति और चिकनपॉक्स से पीडित मरीज के सीधे संपर्क में आने से भी यह रोग हो सकता है।
इसके क्या लक्षण है :-
* सिरदर्द, बदनदर्द, बुखार, कमजोरी, भोजन में अरूचि, गले में सूखापन और खांसी आदि होने के बाद दूसरे दिन से ही त्वचा पर फुंसियां उभरने लगती हैं।
* डॉक्टरी सलाह भी जरूरी है क्युकि मरीज को यदि चिकनपॉक्स के साथ बैक्टीरिया का संक्रमण, मेनिनजाइटिस (दिमाग का बुखार), इनसेफिलाइटिस (दिमाग में सूजन), गुलेन बेरी सिंड्रोम (कमजोर इम्युनिटी से नर्वस सिस्टम का प्रभावित होना), निमोनिया, मायोकारडाइटिस (ह्वदय की मांसपेशियों को क्षति), किडनी और लिवर में संक्रमण हो जाए तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए वर्ना स्थिति गंभीर हो सकती है।
* आमतौर पर लोग इन्हें माता समझकर झाड़ा या घरेलू उपचार कराने लगते हैं जो कि गलत है। इसके लिए डॉक्टर को दिखाना जरूरी होता है। चिकनपॉक्स में शरीर पर उभरे दाने यानी पानी वाली फंसियां एंटीवायरल दवाओं और एहतियात बरतने से दो हफ्ते में ठीक होने लगती हैं। लेकिन ध्यान रहे कि मरीज के सीधे संपर्क मे आने वाले लोग स्वयं भी पूरी तरह से सावधानी बरतें।
* गर्मियों की शुरूआत से ही चिकनपॉक्स के वायरस ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं और रोग का कारण बनते हैं। ऎसे में ज्यादा सावधानी बरतना जरूरी है।
कैसे बचाव करे :-
1 इससे बचाव के लिए बच्चों का समय-समय पर टीकाकरण होना चाहिए। ये वैक्सीनेशन दो डोज में दी जाती हैं। पहली डोज बच्चे के 12-15 माह के होने पर और दूसरी डोज 4-5 साल की उम्र में दी जाती है। बीमारी के दौरान मरीज को वेलसाइक्लोवीर और एसाइक्लोवीर जैसी एंटीवायरल दवाएं दी जाती हैं।
चिकनपॉक्स के मरीज की देखभाल:—-
* चिकनपॉक्स होने पर मरीज को अलग कमरे में रखें, उसके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजों को घर के अन्य लोग प्रयोग में न लें। देखभाल करने वाले लोग मुंह पर मास्क लगाकर रखें। इस समस्या में डॉक्टर मरीज की स्थिति देखने के बाद ही उसे नहाने के निर्देश देते हैं। इस दौरान रोगी को ढीले और सूती कपड़े पहनाएं व इन्हें रोजाना बदल दें।
* चिकनपॉक्स में मरीज को खट्टी, मसालेदार, तली-भुनी और नमक वाली चीजें खाने के लिए न दें क्योंकि इससे फुंसियो में खुजली बढ़ सकती है। उसके खाने में सूप, दलिया, खिचड़ी और राबड़ी जैसी हल्की व ठंडी चीजों को शामिल करें। बीमारी के बाद व्यक्ति कमजोरी महसूस करने लगता है जिसके लिए उसे पौष्टिक आहार, फल व जूस, दूध, दही, छाछ जैसे तरल पदार्थ दें।
* आयुर्वेद में चिकनपॉक्स को “लघुमसूरिका” कहते हैं। यह रोग शरीर की मेटाबॉलिक दर मे गड़बड़ी से होता है जिसके लिए संजीवनी और मधुरांतक वटी तुरंत राहत के लिए दी जाती है। गिलोय की 5-7 इंच लंबी बेल को कूटकर इसका रस निकाल लें या गर्म पानी में उबालकर, ठंडा होने पर इसे मसल लें और छानकर सुबह और शाम को प्रयोग करें।
* तुलसी के 5 पत्ते, 5 मुनक्का, 1 बड़ी पीपली (छोटे बच्चों को 1/4 पीपली व बड़े बच्चों को 1/2 पीपली) को कूटकर रस निकाल लें या सिल पर पीसकर पेस्ट बना लें। छोटे बच्चों को 1/2 चम्मच व बड़े बच्चों को एक चम्मच सुबह-शाम को दें।
* यदि फुंसियों में ज्यादा खुजली हो तो छोटे बच्चों को 1/4 चम्मच और बड़े बच्चों को 1/2 चम्मच हल्दी को 1/2 गिलास दूध में मिलाकर दिन मे दो बार देने से लाभ होगा। तुलसी के 5 पत्तों को चाय बनाते समय उबाल लें और छानकर पीने से दर्द, खुजली में राहत मिलती है।
* नीम की ताजा पत्तियों को मरीज के बिस्तर पर या आसपास रखने से कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा मरीज को खाने में नमक वाली और गर्म चीजें देने की बजाय राबड़ी व ठंडे तरल पदार्थ दें
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क्षण पहचानने में देर न करें
डॉक्टरों का मानना है कि चिकन पॉक्स को समझने में मरीज देरी कर देते हैं, जिससे अक्सर इलाज मुश्किल हो जाता है। इसलिए सबसे पहले चिकन पॉक्स के लक्षण जानने जरूरी हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि सबसे खास लक्षण है शरीर में पानी युक्त लाल दानों का उभरना। इसके बाद मरीज को जुखाम व बुखार की शिकायत शुरू हो जाती है।
इन्हें जल्दी हो सकता है संक्रमण
गर्भावस्था के समय महिला को चिकन पॉक्स होने पर नवजात शिशु में संक्रमण का खतरा 70 प्रतिशत बढ़ जाता है। कमजोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को भी यह वायरस आसानी से शिकार बना लेता है, इसलिए गर्भ ठहरने के 14 हफ्ते के बाद दी गई पावर बूस्टर डोज को वैरिसैला वायरस के बचाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
सावधानियां जरूर बरतें
एक बार आपको ये लक्षण दिख जाएं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। दूसरे लोगों को इससे सुरक्षित रखने का प्रयास भी करें। याद रखें कि हवा और खांसी के माध्यम से संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के शरीर तक पहुंच जाता है। बच्चों को विशेष रूप से चिकन पॉक्स के रोगी से दूर रखें। चिकन पॉक्स के रोगी घर से कम से कम निकलें। इससे एक परिवार का संक्रमण दूसरे परिवार तक पहुंचने से रुकेगा। रोगी के पास खूब सफाई रखें, जिससे संक्रमण बढ़ने न पाए।
दोबारा चिकन पॉक्स, दोगुनी सावधानी
जिन लोगों को दोबारा चिकन पॉक्स हो रहा है, उन्हें सचेत रहने की ज्यादा जरूरत होती है। बीएल कपूर अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शेखर वशिष्ठ बताते हैं कि चिकनपॉक्स एक बार हो तो अधिक गंभीर नहीं है, जबकि यदि दस साल की उम्र के बीच बच्चों को दो बार से अधिक बार हो तो ल्यूकीमिया बीमारी हो सकती है। ये खून से संबंधित बीमारी है, जिससे रक्त में पाई जाने वाली लाल रक्त कणिकाएं तेजी से क्षतिग्रस्त होती हैं।
साफ-सफाई का खास खयाल
कई लोगों को भ्रम है कि चिकन पॉक्स के रोगी को नहलाना नहीं चाहिए, जबकि सच यह है कि चिकन पॉक्स के मरीज को अतिरिक्त साफ-सफाई की जरूरत होती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ. विनोद कुमार पॉल सलाह देते हैं कि मरीज को रोज नीम के पानी से नहलाना चाहिए। साफ कपड़े पहनाने चाहिए। उसके बर्तन वगैरह भी अलग रखने चाहिए, ताकि उसका संक्रमण दूसरों तक न पहुंचे।
कब घातक होता है चिकन पॉक्स
यों तो चिकन पॉक्स पूरी तरह से इलाज वाली बीमारी है और सही इलाज मिलने पर जल्दी ठीक भी हो जाती है। संक्रमण भी एक हफ्ते से दो हफ्ते के बीच में खत्म हो जाता है। लेकिन अगर सावधानियां न बरती जाएं तो दो से तीन हफ्ते तक संक्रमण शरीर में बढ़ता रहता है। अगर ये नियंत्रित न हो तो दिमाग और लिवर तक इसका असर पहुंच जाएगा। इसके बाद दूसरी बीमारियां आपको अपनी गिरफ्त में लेने लगती हैं। इनमें ज्वॉइंडिस यानी पीलिया जैसी बीमारी भी हो सकती है, जिसे आम लोग जानते-समझते हैं। और हाइड्रोसेफेलिक्स जैसी गंभीर बीमारी भी हो सकती है, जिसका अक्सर लोगों ने नाम भी नहीं सुना होता। हाइड्रोसेफेलिक्स में दिमाग में पानी भर जाता है।
टीकाकरण ही एकमात्र बचाव
चिकनपॉक्स से बचाव के लिए सीएक्सवी वैक्सीनेशन एकमात्र विकल्प है। गर्भवती महिला को डोज दी जाती है, जिससे बच्चा सुरक्षित रहे। अगर गर्भवती महिला को दवा नहीं दी गई है तो जन्म के 14 हफ्ते के भीतर बच्चों को चिकनपॉक्स की तीन डोज दी जानी चाहिए। निजी नर्सिग होम में उपलब्ध है।
कुछ मिथ और हकीकत
–मिथ: गहरे रंग की चीजें खाने से गहरे दाग पड़ते हैं!
–सच: गहरे दाग से बचना चाहते हैं तो केवल एक सूत्र याद रखें कि दागों पर बार-बार नाखून न लगें।
–मिथ: चिकन पॉक्स ठीक होने के चार या पांच महीने तक नॉनवेज नहीं खाना चाहिए, वरना शरीर में खुजली हो जाती है।
–सच: मेडिकल साइंस नॉनवेज खाने से कतई नहीं रोकती। यहां तक कि अगर आप सीफूड खाएं तो भी कोई नुकसान नहीं होता।
–मिथ: चिकन पॉक्स के दौरान बाल नहीं धुलने चाहिए और नहाना भी नहीं चाहिए वरना शरीर में हवा घुल जाती है और बुढ़ापे में कई समस्याओं का सामना पड़ता है।
–सच: आप रोज नहा सकते हैं। बाल भी धुल सकते हैं। केवल इतना ध्यान रखिए कि दाग वाले स्थान पर गीले तौलिए से न पोछें, वरना संक्रमण हो सकता है।
छोटी माता (चिकेन पॉक्स) के लिए आजकल एक टीका उपलब्ध है जो कि 12 महीने से अधिक आयु वाले उस व्यक्ति को दिया जा सकता है जिसे यह बीमारी न हुई हो और जिसमें छोटी-माता (चिकेन पॉक्स) से सुरक्षा के पर्याप्त प्रतिकारक उपलब्ध न हो।
छोटी-माता (चिकेन पॉक्स) वाले बच्चों को एस्प्रीन लेने पर रेईस सिन्ड्रोम हो सकता है जो कि बहुत गंभीर बीमारी है तथा इससे मस्तिष्क की खराबी हो सकती है और वह मर भी सकता है। बच्चों को छोटी-माता (चिकेन पाक्स) होने पर एस्प्रीन की गोली कदापि न दें। डॉक्टर द्वारा विशेष रूप से विनिर्धारित करने पर ही बच्चों को किसी अन्य बीमारी के लिए एस्प्रीन देनी चाहिए। बच्चों को गोली की दवाई देते समय डॉक्टर से जांच करा लेना अति उत्तम है। वयस्क में निमोनिया होने का खतरा विशेष रूप से बना रहता है। इसके अतिरिक्त एचआईवी से संक्रमित या प्रतरोधी प्रणाली में कमी वाले रोगियों को निमोनिया का अधिकतर खतरा होता है। ऐसी गर्भवती महिलाएं जिनको पहले कभी छोटी-माता (चिकेन पाक्स) नहीं हुई है, उनको सक्रिया वायरस वाले के संपर्क में नहीं आना चाहिए।
चिकन पॉक्स होने का कारण होता है वरिसेल्ला ज़ोस्टर नाम का विषाणु। इस विषाणु के शिकार लोगों के पूरे शरीर में फुंसियों जैसी चक्तियाँ विकसित होती हैं। अक्सर इसे ग़लती से खसरे की बीमारी समझी जाती है। इस बीमारी में रह रह कर खुजली करने का बहुत मन करता है और अक्सर इसमें खांसी और बहती नाक के लक्षण भी दिखाई देते हैं। आयुर्वेद में इस बीमारी को लघु मसूरिका के नाम से जाना जाता है। यह एक छूत की बीमारी होती है और ज़्यादातर 1 से 10 साल की उम्र के बीच के बच्चे इस रोग के शिकार होते हैं।
चिकन पॉक्स के लक्षण:
चिकन पॉक्स की शुरुआत से पहले पैरों और पीठ में पीड़ा और शरीर में हल्की बुखार, हल्की खांसी, भूख में कमी, सर में दर्द, थकावट, उल्टियां वगैरह जैसे लक्षण नज़र आते हैं और 24 घंटों के अन्दर पेट या पीठ और चेहरे पर लाल खुजलीदार फुंसियां उभरने लगती हैं, जो बाद में पूरे शरीर में फैल जाती हैं जैसे कि खोपड़ी पर, मुहं में, नाक में, कानों और गुप्तांगो पर भी। आरम्भ में तो यह फुंसियां दानों और किसी कीड़े के डंक की तरह लगती हैं, पर धीरे धीरे यह तरल पदार्थ युक्त पतली झिल्ली वाले फफोलों में परिवर्तित हो जाती हैं। चिकन पॉक्स के फफोले एक इंच चौड़े होते हैं और उनका तल लाल किस्म के रंग का होता है और 2 से 4 दिनों में पूरे शरीर में तेज़ी से फैल जाते हैं।
चिकन पॉक्स के आयुर्वेदिक उपचार:—
स्वर्णमक्षिक भस्म: 120 मिलीग्राम स्वर्णमक्षिक भस्म कान्च्नेर पेड़ की छाल के अर्क के साथ सुबह और शाम लेने से चिकन पॉक्स से राहत मिलती है। इंदुकला वटी: बीमारी होने के दूसरे सप्ताह से सुबह शाम पानी के साथ 125 मिलीग्राम इंदुकला वटी के प्रयोग से भी लाभ मिलता है। करेले के पत्तों के जूस के साथ एक चुटकी हरिद्रा पाउडर के प्रयोग से भी लाभ मिलता है। जइ के दलिये के दो कप दो लीटर पानी में डालकर उबाल लें और इस मिश्रण को एक महीन सूती कपडे में बांधकर नहाने के टब में कुछ देर तक डुबोते रहें। जइ की दलिया उस कपडे में से टब में रिसता रहेगा जिससे पानी पर एक आरामदेह परत बन जायेगी जिससे त्वचा को आराम मिलेगा और शरीर पर हुए चकते भी भरने लगते है।
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